Saturday 26 July 2014

                     कारगिल युद्ध  और विजय दिवस 

                                                                                                     अंजना वर्मा 

                                       कारगिल युद्ध   भारत पाकिस्तान के बीच आज़ादी के बाद से जारी संघर्ष की ही दास्तान है , कारगिल युद्ध भी  कश्मीर हथियाने और भारत को अस्थिर करने के लिए सन 1947-48 तथा 1965 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कबीलाइयों की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों का  यह अगला कदम था , जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी. भारतीय सेनाओं ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना तथा मुजाहिदीनों के रूप में उसके पिट्ठुओं को परास्त किया. 
                                    
                                       कारगिल युद्ध के तीन चरण थे . पहला, पाकिस्तानी घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ते राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमाक एक पर नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से अहम सामरिक स्थानों पर कब्जा कर लिया. दूसरा, भारत ने घुसपैठ का पता लगाया और अपनी सेना को तुरंत जवाबी हमले के लिए लामबंद करना शुरू किया तथा तीसरा, भारत और पाकिस्तान की फ़ौज़ के बीच भीषण संघर्ष हुआ और एक बार फिर पाकिस्तान  की करारी शिकस्त हुई थी


                             मई 1999 में एक स्थानीय ग्वाले से मिली सूचना के बाद बटालिक सेक्टर में ले. सौरभ कालिया की  पेट्रोल टीम  पर हमले  से  इलाके में घुसपैठियों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी . शुरू में भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को महज़ जिहादी समझकर  उन्हें खदेड़ने के लिए सीमित संख्या में सैनिक भेजे थे , लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की ओर से हुए जवाबी हमले और एक के बाद एक कई इलाकों में घुसपैठियों के मौजूद होने की खबर के बाद भारतीय सेना को समझने में देर नहीं लगी कि असल में यह एक योजनाबद्ध ढंग से और बड़े स्तर पर की गई घुसपैठ थी, जिसमें केवल जिहादी नहीं, पाकिस्तानी सेना भी शामिल थी.फिर भारतीय सेना ने 30,000 सैनिको के साथ ऑपरेशन विजय शुरू किया . भारतीय वायु सेना ने भी 26 मई को ‘ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया, जबकि जल सेना ने कराची तक पहुंचने वाले समुद्री मार्ग से सप्लाई रोकने के लिए अपने पूर्वी इलाकों के जहाजी बेड़े को अरब सागर में ला खड़ा किया. बाद में अमेरिका के एक प्रमुख थिंक टैंक ने कहा है कि कारगिल  युद्ध भारत की हवाई युद्धकौशल क्षमता का 'कमजोर परीक्षण' था
                                         

                                      कारगिल सेक्टर में 140 किमी. लम्बी नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर पाकिस्तानी सेना ने 1500 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूभाग पर कब्जा कर लियाथा   यह माना जाता है कि भारत सरकार ने इस 'ऑपरेशन विजय' का जिम्मा  करीब दो लाख सैनिकों को सौंपा था. जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब तीस हजार सैनिक मौजूद थे. इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के 357 सैनिक मारे गए, लेकिन बताया जाता है कि भारतीय सेना की कार्रवाई में उसके चार हजार सैनिकों की जान गई. भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए. दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था और आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत पा ली गई. यही दिन अब ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है , विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग  में शामिल है.
                                      आज २६ जुलाई को कारगिल विजय दिवस के अवसर पर सबके साथ मै भी १९९९ में कारगिल में शहीद हुए वीर सेनानियों को नमन करता हूँ , उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ , हालाँकि मेरी तब से ही व्यक्तिगत धारणा यह है कि वास्तव में कारगिल में पाकिस्तान की धुसपैठ हमारी लापरवाही और नाकामियो का दुष्परिणाम थी , जिसकी कीमत वीर सैनिको ने अपनी जान वतन के लिए कुर्बान कर चुकाई थी ,पहले हम कारगिल और आसपास के इलाको में पाकिस्तानियो के धुस जाने पर आँखे मुदे हाथ पर हाथ डालकर बैठे रहे , फिर आतंकवादियों और पाकिस्तानी फ़ौज़ से हाथ जोड़कर
ले जाने की विनती करते रहे , इसके बाद पानी सिर से ऊपर आ  जाने पर आखिर में मजबूरी सेना को मोर्चा बचाने के लिए कहा गया , हमारे वीर फौजियो ने इसके बावजूद असीम शौर्य और वीरता के साथ लड़कर कश्मीर का वह हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे से  वापस छीना था , इसके लिए वो तो बधाई के हकदार है ,पर इसे विजय कैसे माना जाये। आज भी सीमा पर यही कमोवेश स्थिति है कि पाकिस्तानी जब चाहे तब गोलाबारी करके हमारे सैनिको और जनता को मौत के घाट उतार देते  है और हम बस दोस्ती और सद्भभावना का राग अलापने में जुटे हुए है ।         
      
                                                                                                          - अंजना वर्मा 
 
                                                           
                                                     

Tuesday 1 July 2014

                  प्रथम विश्व युद्ध और भारत 
                                                                                                                         - अनिल वर्मा 

                     ब्रिटिश काउंसिल द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के बारे में  हाल में ही कराये गए एक सर्वे में २५ % भारतीयों ने यह बताया है कि प्रथम विश्व युद्ध में भारत ब्रिटेन के खिलाफ लड़ा था ,जबकि वास्तव में इस महायुद्ध में भारतीय  ब्रिटिश हूकूमत की ओर से लड़े थे, क्योकि इस  युद्ध  के समय भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था।

                                            प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना (जिसे कभी-कभी ब्रिटिश भारतीय सेना कहा जाता है) ने प्रथम विश्व युद्ध में  यूरोपीय, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने अनेक डिविजनों और स्वतंत्र ब्रिगेडों का योगदान दिया था. दस लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं .1914 में ब्रिटिश नियंत्रण वाली भारतीय सेना दुनिया में सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना थी, जिसकी कुल क्षमता 2 लाख 40 हजार लोगों की थी। नंवबर 1918 तक इसमें 548,311 लोग शामिल हो गए थे। 13 लाख भारतीय सैनिकों ने प्रथम विश्वयुद्ध में हिस्सा लिया था, जिसमें 62 हजार सैनिक मारे गए थे और 67 हजार के करीब घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी। विश्‍व प्रथम विश्‍व युद्ध (1914 - 1918)   का यह शताब्दी उत्‍सव  यह भारत के लाखों  सैनिकों के बलिदान की याद दिलाता है।
                            
                                       प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने जर्मन पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी मोर्चे पर जर्मन साम्राज्य के खिलाफ युद्ध किया. भारत के सिपाही फ्रांस और बेल्जियम, एडीन, अरब, पूर्व अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेटामिया, फिलिस्‍तीन, पर्सिया और सालोनिका सहित विश्‍व भर में लगभग पचास देशों में लड़ाई के मैदानों में बड़े सम्‍मान के साथ लड़े और वहीं उनकी मृत्यु हो गई .  गढ़वाल राईफल्स रेजिमेन के दो सिपाहियो को संयुक्त राज्य का उच्चतम पदक 'विक्टोरिया क्रॉस' भी मिला था।यप्रेस के पहले युद्ध में खुदादाद खान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय बने. कुल १३ भारतियों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। भारतीय डिवीजनों को मिस्र, गैलीपोली भी भेजा गया था और लगभग 700,000 सैनिकों ने तुर्क साम्राज्य के खिलाफ मेसोपोटामिया में अपनी सेवा दी थी. जबकि कुछ डिवीजनों को विदेश में भेजा गया था, अन्य को उत्तर पश्चिम सीमा की सुरक्षा के लिए और आंतरिक सुरक्षा तथा प्रशिक्षण कार्यों के लिए भारत में ही रहना पड़ा था.। रियासतों के राजाओं ने इस युद्ध में दिल खोलकर ब्रिटेन की आर्थिक और सैनिक सहायता की। 1,70,000 जानवरों के अलावा 37 लाख टन अनाज भारत की तरफ से युद्ध में भेजा गया। भारत ने युद्ध के प्रयासों में जनशक्ति और सामग्री दोनों रूप से भरपूर योगदान किया।


यह बात प्रथम विश्‍वयुद्ध के सौ वर्ष पूरे होने पर ब्रिटिश काउंसिल द्वारा किए सर्वे में सामने आई है। हालांकि सच्‍चाई यह है कि भारत उस समय ब्रिटेन का हिस्‍सा था और भारतीय सैनिक उसकी ओर से लड़े थे।
1914 में शुरू हुए प्रथम विश्‍व युद्ध के बारे में लोगों की जानकारी का पता लगाने ब्रिटिश काउंसिल ने एक सर्वे किया है। इस सर्वे में भारत के साथ ही मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, रूस, टर्की और ब्रिटेन के लोगों को शामिल किया गया। इस दौरान भारतीयों से जब यह पूछा गया कि भारत ने तब किस देश के खिलाफ युद्ध किया था, तो 25 प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन का नाम लिया।
गौरतलब है कि प्रथम विश्‍व युद्ध में ब्रिटिश सेना में भारतीयों की अहम भूमिका थी। उस वक्‍त ब्रिटिश सेना में दस लाख से भी अधिक भारतीय सैनिक शामिल थे। एक अनुमान के अनुसार प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान लगभग एक लाख भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।
- See more at: http://naidunia.jagran.com/world/-1-in-4-indians-believe-india-fought-against-uk-in-wwi-63697#sthash.icgl1tm8.dpuf
                             युद्ध  आरम्भ होने के पहले जर्मनों ने पूरी कोशिश की थी कि भारत में ब्रिटिश हूकूमत के विरुद्ध आन्दोलन भड़काया जाये , उसे यह आशा थी कि ब्रिटेन के इस युद्ध में फंसने की स्थिति में भारत के क्रान्तिकारी इस अवसर का लाभ उठाकर देश से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने में में सफल हो जाएंगे। किन्तु भारत के बड़े नेताओं ने  इस युद्ध में ब्रिटेन को समर्थन देकर  ब्रिटिश चिन्तकों को भी चौंका दिया था।  भारतीय  कांग्रेस के नेताओं की  यह बहुत अजीब हास्यास्पद धारणा थी कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए इस समय ब्रिटेन की सहायता की जानी चाहिए और जब ४ अगस्त को युद्ध आरम्भ हुआ , तो ब्रिटेन ने भारत के इन प्रमुख नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया। 

                                                             इस युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था लगभग दिवालिया हो गयी थी। भारत के राजनेता यह आशान्वित थे कि युद्ध में ब्रिटेन के समर्थन से खुश होकर अंग्रेज भारत को इनाम के रूप में स्वतंत्रता दे देंगे या कम से कम स्वशासन का अधिकार देंगे , किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जबकि सन १९१७ में रूस में क्रांति होने वह सम्राज्यवादी ताकतों के चंगुल  से मुक्त हो गया था। वास्तव में कांग्रेस के नेताओ के इस गलत फैसले से   भारत के  स्वाधीनता आंदोलन को भारी नुकसान पॅहुचा  और फिर अंग्रेजों ने युद्ध समाप्त होते ही सन १९१९ में जलियावाला बाग़ के कत्लेआम के घिनौने कृत्य से भारतीय जनता के मुँह पर करारा तमाचा मारा था। 
                                                                                                  
यह बात प्रथम विश्‍वयुद्ध के सौ वर्ष पूरे होने पर ब्रिटिश काउंसिल द्वारा किए सर्वे में सामने आई है। हालांकि सच्‍चाई यह है कि भारत उस समय ब्रिटेन का हिस्‍सा था और भारतीय सैनिक उसकी ओर से लड़े थे।
1914 में शुरू हुए प्रथम विश्‍व युद्ध के बारे में लोगों की जानकारी का पता लगाने ब्रिटिश काउंसिल ने एक सर्वे किया है। इस सर्वे में भारत के साथ ही मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, रूस, टर्की और ब्रिटेन के लोगों को शामिल किया गया। इस दौरान भारतीयों से जब यह पूछा गया कि भारत ने तब किस देश के खिलाफ युद्ध किया था, तो 25 प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन का नाम लिया।
गौरतलब है कि प्रथम विश्‍व युद्ध में ब्रिटिश सेना में भारतीयों की अहम भूमिका थी। उस वक्‍त ब्रिटिश सेना में दस लाख से भी अधिक भारतीय सैनिक शामिल थे। एक अनुमान के अनुसार प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान लगभग एक लाख भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।
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बोस्निया की राजधानी साराजेवो ने शनिवार को प्रथम विश्व युद्ध के सौ साल पूरे होने के मौके पर उस हत्याकांड को याद किया, जिसने पूरी दुनिया को युद्ध की आग में झोंक दिया था। 28 जून, 1914 को ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद पूरी दुनिया चार साल तक युद्ध की आग धधकती रही।
विएना के प्रमुख आर्केस्ट्रा ने एक समारोह के दौरान लोगों को एकता का संदेश देती घुनें बजाईं। यूरोप के कई प्रसारकों ने इस समारोह का सीधा प्रसारण किया। युद्ध के जख्मों से आज भी जूझ रहे बोस्निया के पूर्व युद्धरत समुदायों ने एकत्र होकर फर्डिनेंड, उनकी पत्नी और उनकी विरासत को याद किया। हालांकि सर्बिया और बोस्नियाई सर्ब के नेताओं ने साराजेवो के आयोजन का बहिष्कार किया। सर्बिया फर्डिनेंड की हत्या को एक बहादुरी के कार्य के रूप में देखता है। एक सर्ब राष्ट्रवादी गैवरिलो प्रिंसिप ने ही ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी और उनकी पत्नी की हत्या की थी।
राजधानी के सिटी हॉल में आयोजित समारोह में ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति हेंज फिचेर मुख्य अतिथि थे। 28 जून, 1914 में इसी जगह पर फर्डिनेंड एक समारोह में शामिल हुए थे। समारोह के बाद आर्च ड्यूक पत्नी के साथ कार में रवाना हुए लेकिन ड्राइवर ने कार गलत दिशा में मोड़ दी। यहीं नदी के किनारे प्रिंसिप ने इस शाही जोड़े को गोली मार दी। हत्याकांड के बाद घटनाओं की जो श्रंखला शुरू हुई, उसके केवल छह सप्ताह बाद ही जंग शुरू हो गई। कुछ ही दिनों में जर्मनी के समर्थन वाले ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया को चेतावनी जारी की और युद्ध का एलान कर दिया। इसका प्रभाव ऐसा पड़ा कि यह संघर्ष चार साल तक चले महायुद्ध में तब्दील हो गया।
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                                                                                                                   - अनिल वर्मा 


 

Saturday 28 June 2014

                      
                  प्रथम  विश्व युद्ध के शुरुवात की एक शताब्दी पूर्ण 
                                                                        
                                                                        - अनिल वर्मा 

                    यह  सर्वविदित है कि  प्रथम और द्वितीय दोनों विश्वयुद्ध में दुनिया के विनाश की ऐसी भयावह तस्वीरे सामने आई थी, कि मानवता काँप  उठी थी।  अब प्रथम विश्वयुद्ध को १०० वर्ष पूर्ण हो रहे है , इस शताब्दी वर्ष में प्रथम विश्वयुद्ध पर आपके लिए मै लगातार रोचक जानकारी प्रस्तुत करुँगा और हर दो दिनों में एक नया पोस्ट आपके सामने होगा। 

                         आज के ही दिन ठीक 100 साल पहले 28 जून सन 1914 को प्रथम विश्व युद्ध की पहली चिंगारी भड़की थी, तब इसका तात्कालिक कारण बोस्निया की राजधानी सर्बिया में 28 जून 1914 में ऑस्ट्रिया के ताज के उत्तराधिकारी आर्कडयूक आर्चफ्राज फर्डिनैंड और उनकी पत्नी सोफी की सर्ब राष्ट्रवादी गैवरिलो प्रिंसिप द्वारा गोली मारकर हत्या करा देना  था  , इस कायरतापूर्ण घटना के बाद गुस्साए ऑस्ट्रिया ने बोस्निया पर भीषण हमला कर दिया। ऑस्ट्रिया और हंगरी ने सर्बिया को चेतावनी जारी देते हुए युद्ध का ऎलान कर दिया , पहले से ही दो गुटों में बंटी दुनिया एक-दूसरे के पाले में आती गई और यह विश्वयुद्ध का विकराल  रूप लेता चला गया। प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत 28 जुलाई, 1914 को हुई थी और यह 11 नवंबर, 1918 तक चला। यह युद्ध इतना भीषण हुआ कि इसकी चपेट में पूरे यूरोपीय देश और उनके उपनिवेश तक आ गए। यह युद्ध जल, थल और नभ तीनों क्षेत्रों में लड़ा गया था और इसमें करीब 90 लाख से अधिक लोग मारे गए थे।

                                 इस महायुद्ध में करीब 70 हजार भारतीय सैनिकों ने अपनी जिंदगी की कुर्बानी देकर ब्रिटेन को ऐतिहासिक जीत का तोहफा दिया था। अंग्रेज सरकार ने सन 1931 में नई दिल्ली में इंडिया गेट स्मारक का निर्माण करवाकर  प्रथम विश्व युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए भारतीय सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि प्रगट की थी ।

                                                                                                                 - अनिल वर्मा 
                                                                                                            ( मोब. न. - 09425181793)